कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
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This podcast presents you hindi poems by dreamer poet
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साहित्य और रंगकर्म का संगम - नई धारा एकल। इस शृंखला में अभिनय जगत के प्रसिद्ध कलाकार, अपने प्रिय हिन्दी नाटकों और उनमें निभाए गए अपने किरदारों को याद करते हुए प्रस्तुत करते हैं उनके संवाद और उन किरदारों से जुड़े कुछ किस्से। हमारे विशिष्ट अतिथि हैं - लवलीन मिश्रा, सीमा भार्गव पाहवा, सौरभ शुक्ला, राजेंद्र गुप्ता, वीरेंद्र सक्सेना, गोविंद नामदेव, मनोज पाहवा, विपिन शर्मा, हिमानी शिवपुरी और ज़ाकिर हुसैन।
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“Skandagupta" is a drama by the poet "Jaishankar Prasad". The play revolves around the historical figure Skandagupta, a "Gupta dynasty" emperor who ruled in ancient India. The play explores Skandagupta's challenges and commitment to upholding justice and righteousness through the dramatic narrative. The drama delves into themes of leadership, duty, and patriotism while also depicting the personal struggles and decisions faced by Skandagupta. Skandagupta" is a drama written by Hindi poet and ...
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This podcast presents Hindi poetry, Ghazals, songs, and Bhajans written by me. इस पॉडकास्ट के माध्यम से मैं स्वरचित कवितायेँ, ग़ज़ल, गीत, भजन इत्यादि प्रस्तुत कर रहा हूँ Awards StoryMirror - Narrator of the year 2022, Author of the month (seven times during 2021-22) Kalam Ke Jadugar - Three Times Poet of the Month. Sometimes I also collaborate with other musicians & singers to bring fresh content to my listeners. Always looking for fresh voices. Write to me at [email protected] #Hind ...
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Jo Ulajh Kar Rah Gayi Filon Ke Jaal Mein | Adam Gondvi
1:48
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1:48जो उलझकर रह गई है फ़ाइलों के जाल में । अदम गोंडवी जो उलझकर रह गई है फ़ाइलों के जाल में गाँव तक वह रौशनी आएगी कितने साल में बूढ़ा बरगद साक्षी है किस तरह से खो गई रमसुधी की झोंपड़ी सरपंच की चौपाल में खेत जो सीलिंग के थे सब चक में शामिल हो गए हमको पट्टे की सनद मिलती भी है तो ताल में जिसकी क़ीमत कुछ न हो इस भीड़ के माहौल में ऐसा सिक्का ढालिए मत जिस्म की टकसा…
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आस्था | प्रियाँक्षी मोहन इस दुनिया को युद्धों ने उतना तबाह नहीं किया जितना तबाह कर दिया प्यार करने की झूठी तमीज़ ने प्यार जो पूरी दुनिया में वैसे तो एक सा ही था पर उसे करने की सभी ने अपनी अपनी शर्त रखी और प्यार को कई नाम, कविताओं, कहानियों, फूलों, चांद तारों और जाने किन किन उपमाओं में बांट दिया जबकि प्यार को उतना ही नग्न और निहत्था होना था जितना कि…
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अनुभव | नीलेश रघुवंशी तो चलूँ मैं अनुभवों की पोटली पीठ पर लादकर बनने लेखक लेकिन मैंने कभी कोई युद्ध नहीं देखा खदेड़ा नहीं गया कभी मुझे अपनी जगह से नहीं थर्राया घर कभी झटकों से भूकंप के पानी आया जीवन में घड़ा और बारिश बनकर विपदा बनकर कभी नहीं आई बारिश दंगों में नहीं खोया कुछ भी न खुद को न अपनों को किसी के काम न आया कैसा हलका जीवन है मेरा तिस पर मुझे…
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स्त्री का चेहरा। अनीता वर्मा इस चेहरे पर जीवन भर की कमाई दिखती है पहले दुख की एक परत फिर एक परत प्रसन्नता की सहनशीलता की एक और परत एक परत सुंदरता कितनी किताबें यहाँ इकट्ठा हैं दुनिया को बेहतर बनाने का इरादा और ख़ुशी को बचा लेने की ज़िद एक हँसी है जो पछतावे जैसी है और मायूसी उम्मीद की तरह एक सरलता है जो सिर्फ़ झुकना जानती है एक घृणा जो कभी प्रेम का …
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Jeb Mein Sirf Do Rupaye | Kumar Ambuj
2:13
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2:13जेब में सिर्फ़ दो रुपये - कुमार अम्बुज घर से दूर निकल आने के बाद अचानक आया याद कि जेब में हैं सिर्फ दो रुपये सिर्फ़ दो रुपये होने की असहायता ने घेर लिया मुझे डर गया मैं इतना कि हो गया सड़क से एक किनारे एक व्यापारिक शहर के बीचोबीच खड़े होकर यह जानना कितना भयावह है कि जेब में है कुल दो रुपये आस पास से जा रहे थे सैकड़ों लोग उनमें से एक-दो ने तो किया मुझे न…
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18 Number Bench Par | Doodhnath Singh
1:57
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1:5718 नम्बर बेंच पर। दूधनाथ सिंह 18 नम्बर बेंच पर कोई निशान नहीं चारों ओर घासफूस –- जंगली हरियाली कीड़े-मकोड़े मच्छर अँधेरा वर्षा से धुली हरी-चिकनी काई की लसलस चींटियों के भुरेभुरे बिल –- सन्नाटा बैठा सन्नाटा । क्षण वह धुल-पुँछ बराबर कौन यहाँ आया बदलती प्रकृति के अलावा प्रशासनिक भवन से दूर कुलसचिव के सुरक्षा-गॉर्ड की नज़रों से बाहर ऋत्विक घटक की डोलती…
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नन्ही पुजारन।असरार-उल-हक़ मजाज़ इक नन्ही मुन्नी सी पुजारन पतली बाँहें पतली गर्दन भोर भए मंदिर आई है आई नहीं है माँ लाई है वक़्त से पहले जाग उठी है नींद अभी आँखों में भरी है ठोड़ी तक लट आई हुई है यूँही सी लहराई हुई है आँखों में तारों की चमक है मुखड़े पे चाँदी की झलक है कैसी सुंदर है क्या कहिए नन्ही सी इक सीता कहिए धूप चढ़े तारा चमका है पत्थर पर इक फ…
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Mujhe Sneh Kya Mil Na Sakega? | Suryakant Tripathi Nirala
1:43
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1:43मुझे स्नेह क्या मिल न सकेगा?। सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' मुझे स्नेह क्या मिल न सकेगा? स्तब्ध, दग्ध मेरे मरु का तरु क्या करुणाकर खिल न सकेगा? जग के दूषित बीज नष्ट कर, पुलक-स्पंद भर, खिला स्पष्टतर, कृपा-समीरण बहने पर, क्या कठिन हृदय यह हिल न सकेगा? मेरे दु:ख का भार, झुक रहा, इसीलिए प्रति चरण रुक रहा, स्पर्श तुम्हारा मिलने पर, क्या महाभार यह झिल न सक…
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शुद्धिकरण | हेमंत देवलेकर इतनी बेरहमी से निकाले जा रहे छिलके पानी के कि ख़ून निकल आया पानी का उसकी आत्मा तक को छील डाला रंदे से यह पानी को छानने का नहीं उसे मारने का दृश्य है एक सेल्समैन घुसता है हमारे घरों में भयानक चेतावनी की भाषा में कि संकट में हैं आप के प्राण और हम अपने ही पानी पर कर बैठते हैं संदेह जब वह कांच के गिलास में पानी को बांट देता है …
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प्रेम और घृणा | नताशा तुम भेजना प्रेम बार-बार भेजना भले ही मैं वापस कर दूँ लौटेगा प्रेम ही तुम्हारे पास पर मत भेजना कभी घृणा घृणा बंद कर देती है दरवाज़े अँधेरे में क़ैद कर लेती है हम प्रेम सँजो नहीं पाते और घृणा पाल बैठते हैं प्रेम के बदले न भी लौटा प्रेम तो लौटेगी चुप्पी बेबसी प्रेम अपरिभाषित ही सही घृणा परिभाषा से भी ज़्यादा कट्टर होती है!…
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Antardwand | Alain Bosquet | Translation - Dharamvir Bharti
1:40
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1:40अंतर्द्वंद | आलेन बास्केट अनुवाद : धर्मवीर भारती मेरा बायाँ हाथ मुझे प्राणदंड देता है मेरा दायाँ हाथ मेरी रक्षा करता है मेरी आँखें मुझे निर्वासन देती हैं मेरी वाणी मुझे प्रताड़ित करती है : अब समय आ गया है कि तुम अपने साथ संधिपत्र पर हस्ताक्षर कर दो! और इस पुराने हृदय में हज़ारों लड़ाइयाँ लड़ी जा रही हैं मेरे शत्रु और मेरे हताश मित्रों के बीच जो अंत …
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जहाज़ का पंछी | कृष्णमोहन झा जैसे जहाज़ का पंछी अनंत से हारकर फिर लौट आता है जहाज़ पर इस जीवन के विषन्न पठार पर भटकता हुआ मैं फिर तुम्हारे पास लौट आया हूँ स्मृतियाँ भाग रही हैं पीछे की तरफ़ समय दौड़ रहा आगे धप्-धप् और बीच में प्रकंपित मैं अपने छ्लछ्ल हृदय और अश्रुसिक्त चेहरे के साथ तुम्हारी गोद में ऐसे झुका हूँ जैसे बहते हुए पानी में पेड़ों के प्रत…
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Pyar Ke Bahut Chehre Hain | Navin Sagar
2:06
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2:06प्यार के बहुत चेहरे हैं / नवीन सागर मैं उसे प्यार करता यदि वह ख़ुद वह होती मैं अपना हृदय खोल देता यदि वह अपने भीतर खुल जाती मैं उसे छूता यदि वह देह होती और मेरे हाथ होते मेरे भाव! मैं उसे प्यार करता यदि मैं पत्ता या हवा होता या मैं ख़ुद को नहीं जानता मैं जब डूब रहा था वह उभर रही थी जिस पल उसकी झलक दिखी मैं कभी-कभी डूब रहा हूँ वह अभी-अभी अपने भीतर उ…
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Kai Aankhon Ki Hairat They Nahi Hain | Aks Samastipuri
1:30
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1:30कई आँखों की हैरत थे नहीं हैं | अक्स समस्तीपुरी कई आँखों की हैरत थे नहीं हैं नये मंज़र की सूरत थे नहीं हैं बिछड़ने पर तमाशा क्यों बनाएँ तुम्हारी हम ज़रूरत थे नहीं हैंद्वारा Nayi Dhara Radio
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Awara Ke Daag Chahiye | Devi Prasad Mishra
2:15
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2:15द्वारा Nayi Dhara Radio
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द्वारा Nayi Dhara Radio
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मैं उड़ जाऊँगा | राजेश जोशी सबको चकमा देकर एक रात मैं किसी स्वप्न की पीठ पर बैठकर उड़ जाऊँगा हैरत में डाल दूँगा सारी दुनिया को सब पूछते बैठेंगे कैसे उड़ गया ? क्यों उड़ गया ? तंग आ गया हूँ मैं हर पल नष्ट हो जाने की आशंका से भरी इस दुनिया से और भी ढेर तमाम जगह हैं इस ब्रह्मांड में मैं किसी भी दुसरे ग्रह पर जाकर बस जाऊँगा मैं तो कभी का उड़ गया होता च…
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Dekho Socho Samjho | Bhagwati Charan Verma
2:51
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2:51देखो-सोचो-समझो | भगवतीचरण वर्मा देखो, सोचो, समझो, सुनो, गुनो औ' जानो इसको, उसको, सम्भव हो निज को पहचानो लेकिन अपना चेहरा जैसा है रहने दो, जीवन की धारा में अपने को बहने दो तुम जो कुछ हो वही रहोगे, मेरी मानो । वैसे तुम चेतन हो, तुम प्रबुद्ध ज्ञानी हो तुम समर्थ, तुम कर्ता, अतिशय अभिमानी हो लेकिन अचरज इतना, तुम कितने भोले हो ऊपर से ठोस दिखो, अन्दर से प…
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इसीलिए | गगन गिल वह नहीं होगा कभी भी फाँसी पर झूलता हुआ आदमी वारदात की ख़बरें पढ़ते हुए सोचता था वह गर्दन के पीछे हो रही सुरसुरी को वह मुल्तवी करता रहता था तमाम ख़बरों के बावजूद सोचता था अपने लिए एक बिलकुल अलग अंत इसीलिए जब अंत आया तो अलग तरह से नहीं आयाद्वारा Nayi Dhara Radio
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Ve Sab Meri Hi Jaati Se Thin | Rupam Mishra
4:39
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4:39वे सब मेरी ही जाति से थीं | रूपम मिश्र मुझे तुम ने समझाओ अपनी जाति को चीन्हना श्रीमान बात हमारी है हमें भी कहने दो ये जो कूद-कूद कर अपनी सहुलियत से मर्दवाद का बहकाऊ नारा लगाते हो उसे अपने पास ही रखो तुम बात सत्ता की करो जिसने अपने गर्वीले और कटहे पैर से हमेशा मनुष्यता को कुचला है जिसकी जरासन्धी भुजा कभी कटती भी है तो फिर से जुड़ जाती है रामचरितमानस…
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स्मृति पिता | वीरेन डंगवाल एक शून्य की परछाईं के भीतर घूमता है एक और शून्य पहिये की तरह मगर कहीं न जाता हुआ फिरकी के भीतर घूमती एक और फिरकी शैशव के किसी मेले कीद्वारा Nayi Dhara Radio
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वे दिन और ये दिन | रामदरश मिश्र तब वे दिन आते थे उड़ते हुए इत्र-भीगे अज्ञात प्रेम-पत्र की तरह और महमहाते हुए निकल जाते थे उनकी महमहाहट भी मेरे लिए एक उपलब्धि थी। अब ये दिन आते हैं सरकते हुए सामने जमकर बैठ जाते हैं। परीक्षा के प्रश्न-पत्र की तरह आँखों को अपने में उलझाकर आह! हटते ही नहीं ये दिन जिनका परिणाम पता नहीं कब निकलेगा।…
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वालिद की वफ़ात पर | निदा फ़ाज़ली तुम्हारी क़ब्र पर मैं फ़ातिहा पढ़ने नहीं आया मुझे मालूम था तुम मर नहीं सकते तुम्हारी मौत की सच्ची ख़बर जिस ने उड़ाई थी वो झूटा था वो तुम कब थे कोई सूखा हुआ पत्ता हवा से मिल के टूटा था मिरी आँखें तुम्हारे मंज़रों में क़ैद हैं अब तक मैं जो भी देखता हूँ सोचता हूँ वो वही है जो तुम्हारी नेक-नामी और बद-नामी की दुनिया थी कही…
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Devi Banne Ki Raah Mein | Priya Johri 'Muktipriya'
2:57
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2:57देवी बनने की राह में | प्रिया जोहरी 'मुक्ति प्रिया' देवी बनने की राह में लंबा सफ़र तय किया हमने कई भूमिकाऐँ बदली आंसू की बूंदो का स्वाद चखा खून बहाया कटा चीरा ख़ुद को अपमान के साथ झेली कई यातनाएँ हमने छोड़ा अपना घर पुराने खिलौंने अपनी प्रिय सखी अपना शहर हमने छोड़ दिया अपने सपनों को और छोटी-छोटी आशाओं को नहीं देखा कभी खुल कर शहर को नहीं जान पाए हम ख…
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Main Sabse Choti Hun | Sumitranandan Pant
1:45
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1:45मैं सबसे छोटी हूँ | सुमित्रानंदन पन्त मैं सबसे छोटी होऊँ, तेरा अंचल पकड़-पकड़कर फिरूँ सदा माँ! तेरे साथ, कभी न छोड़ूँ तेरा हाथ! बड़ा बनाकर पहले हमको तू पीछे छलती है मात! हाथ पकड़ फिर सदा हमारे साथ नहीं फिरती दिन-रात! अपने कर से खिला, धुला मुख, धूल पोंछ, सज्जित कर गात, थमा खिलौने, नहीं सुनाती हमें सुखद परियों की बात! ऐसी बड़ी न होऊँ मैं तेरा स्नेह न…
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Aapki Yaad Aati Rahi Raat Bhar | Makdoom Mohiuddin
2:01
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2:01आप की याद आती रही रात भर | मख़दूम मुहिउद्दीन आप की याद आती रही रात भर चश्म-ए-नम मुस्कुराती रही रात भर रात भर दर्द की शम्अ जलती रही ग़म की लौ थरथराती रही रात भर बाँसुरी की सुरीली सुहानी सदा याद बन बन के आती रही रात भर याद के चाँद दिल में उतरते रहे चाँदनी जगमगाती रही रात भर कोई दीवाना गलियों में फिरता रहा कोई आवाज़ आती रही रात भर…
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Khidki Par Subah | TS Eliot | Translation - Dharmvir Bharti
1:46
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1:46खिड़की पर सुबह | टी. एस. एलियट अनुवाद : धर्मवीर भारती नीचे के बावर्चीख़ाने में खड़क रही हैं नाश्ते की तश्तरियाँ और सड़क के कुचले किनारों के बग़ल-बग़ल— मुझे जान पड़ता है—कि गृहदासियों की आर्द्र आत्माएँ अहातों के फाटकों पर अंकुरित हो रही हैं, विषाद भरी कुहरे की भूरी लहरें ऊपर मुझ तक उछाल रही हैं। सड़क के तल्ले से तुड़े मुड़े हुए चेहरे और मैले कपड़ों में…
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यहाँ सब ठीक है | धीरज शहर जाने वालों के पास हमेशा नहीं होते होंगे वापस लौटने के पैसे ऐसे में वो ढूंढते होंगे कुछ, और उसी कुछ का सब कुछ कि जैसे सब कुछ का चाय-पानी सब कुछ का नून- तेल सब कुछ का दाल-चावल और ऐसे में, और जब कोई नया आता होगा शहर तो उससे पूछते होंगे बरसात मेला, कजरी चैत करते होंगे ढेरों फ़ोन पर बात और दोहराते होंगे बस यह बात कि यहाँ सब ठीक…
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Yah Main Samajh Nahi Pati | Adiba Khanum
3:43
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3:43यह मैं समझ नहीं पाती| अदीबा ख़ानम यह मैं समझ नहीं पाती हम आख़िर किस संकोच से घिर-घिर के पछ्छाड़े खाते हैं। बार-बार भागते हैं अंदर की ओर अंदर जहां सुरक्षा है अपनी ही बनाई दीवारों की अंदर जहां अंधेरा है. एक सुखद शान्त अंधेरा। वह कौन सी हड़डी है जो गले में अटकी है और जिसे जब चाहे निकालकर फेंका जा सकता है। लेकिन क्यों इस हड़डी का चुभते रहना हमें आनंद दे…
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Bhagwan Ke Dakiye | Ramdhari Singh Dinkar
1:42
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1:42भगवान के डाकिए | रामधारी सिंह दिनकर पक्षी और बादल, ये भगवान के डाकिए हैं, जो एक महादेश से दूसरे महादेश को जाते हैं। हम तो समझ नहीं पाते हैं मगर उनकी लाई चिट्ठियाँ पेड़, पौधे, पानी और पहाड़ बाँचते हैं। हम तो केवल यह आँकते हैं कि एक देश की धरती दूसरे देश को सुगंध भेजती है। और वह सौरभ हवा में तैरते हुए पक्षियों की पाँखों पर तिरता है। और एक देश का भाप …
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मायका | अन्वेषा राय 'मंदाकिनी' हिंदी के शब्दकोश में प्रत्येक शब्द का एक अर्थ लिखा है, मगर एक शब्द है जिसका अर्थ ना मुंशी जी को पता है, ना महादेवी को और ना ही मुझे.. “मायका" पढ़ने - पढाने के लिए हमें मायके का मतलब “मा का घर" रटवा दिया गया है ।! पर हर स्त्री, जब भी लांघती है ससुराल की दहलीज़, मायके जाने के लिए, तो आगे बढने से पूर्व उसके मन में एक सवाल…
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पिता का हत्यारा | मदन कश्यप उसके हाथ में एक फूल होता है जो मुझे चाकू की तरह दिखता है सच तो यह है कि वह चाकू ही होता है जो कैमरों में फूल जैसा दिखता है और उन तमाम लोगों को भी फूल ही दिखता है जो अपनी आँखों से नहीं देखते वह मेरे पिता का हत्यारा है रोज़ ही मिलता है टेलेविज़न चैनलों और अख़बारों में ही नहीं कभी-कभार सड़कों पर आमने-सामने भी मैं इतना डर जाता …
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जनहित का काम | केदारनाथ सिंह मेह बरसकर खुल चुका था खेत जुतने को तैयार थे एक टूटा हुआ हल मेड़ पर पड़ा था और एक चिड़िया बार-बार बार-बार उसे अपनी चोंच से उठाने की कोशिश कर रही थी मैंने देखा और मैं लौट आया क्योंकि मुझे लगा मेरा वहाँ होना जनहित के उस काम में दखल देना होगा।द्वारा Nayi Dhara Radio
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एक अजीब-सी मुश्किल | कुँवर नारायण एक अजीब-सी मुश्किल में हूँ इन दिनों— मेरी भरपूर नफ़रत कर सकने की ताक़त दिनोंदिन क्षीण पड़ती जा रही अंग्रेज़ों से नफ़रत करना चाहता जिन्होंने दो सदी हम पर राज किया तो शेक्सपीयर आड़े आ जाते जिनके मुझ पर न जाने कितने एहसान हैं मुसलमानों से नफ़रत करने चलता तो सामने ग़ालिब आकर खड़े हो जाते अब आप ही बताइए किसी की कुछ चलती …
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प्रेम | कृष्णमोहन झा एक माहिर चीते की तरह अपने पंजों को दबा कर आता है प्रेम और जबड़े में उठाकर तुम्हें ले जाता है अगले दिन या अगले के अगले दिन पंजों के निशान देखती है दुनिया लेकिन उसे तुम्हारे टपकते रक्त का पता नहीं चलता तुम्हें भी कहाँ पता चलता है कि जिस जबड़े में तुम फँस गए हो अचानक उसका नाम मृत्यु है या है प्रेम…
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Koshish Karne Walon Ki Haar Nahi Hoti | Sohanlal Dwivedi
2:30
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2:30कोशिश करने वालों की हार नहीं होती | सोहनलाल द्विवेदी लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती कोशिश करने वालों की हार नहीं होती नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है मन का विश्वास रगों में साहस भरता है चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती कोशिश करने वालों की हार नहीं होती डुबकियां सिंधु में गो…
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Vijayi Vishwa Tiranga Pyara | Shyamlal Gupt 'Paarshad'
2:37
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2:37विजयी विश्व तिरंगा प्यारा | श्यामलाल गुप्त 'पार्षद' विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा। सदा शक्ति बरसाने वाला, प्रेम सुधा सरसाने वाला, वीरों को हरषाने वाला, मातृभूमि का तन-मन सारा। झंडा...। स्वतंत्रता के भीषण रण में, लखकर बढ़े जोश क्षण-क्षण में, कांपे शत्रु देखकर मन में, मिट जाए भय संकट सारा। झंडा...। इस झंडे के नीचे निर्भय, लें स्वराज्…
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Sab Kuch Keh Lene Ke Baad | Sarveshwar Dayal Saxena
3:02
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3:02सब कुछ कह लेने के बाद | सर्वेश्वरदयाल सक्सेना सब कुछ कह लेने के बाद कुछ ऐसा है जो रह जाता है, तुम उसको मत वाणी देना। वह छाया है मेरे पावन विश्वासों की, वह पूँजी है मेरे गूँगे अभ्यासों की, वह सारी रचना का क्रम है, वह जीवन का संचित श्रम है, बस उतना ही मैं हूँ, बस उतना ही मेरा आश्रय है, तुम उसको मत वाणी देना। वह पीड़ा है जो हमको, तुमको, सबको अपनाती है…
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Bolne Mein Kam Se Kam Bolun | Vinod Kumar Shukla
2:36
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2:36बोलने में कम से कम बोलूँ | विनोद कुमार शुक्ल बोलने में कम से कम बोलूँ कभी बोलूँ, अधिकतम न बोलूँ इतना कम कि किसी दिन एक बात बार-बार बोलूँ जैसे कोयल की बार-बार की कूक फिर चुप। मेरे अधिकतम चुप को सब जान लें जो कहा नहीं गया, सब कह दिया गया का चुप। पहाड़, आकाश, सूर्य, चंद्रमा के बरक्स एक छोटा सा टिम-टिमाता मेरा भी शाश्वत छोटा-सा चुप। ग़लत पर घात लगाकर ह…
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घर की ओर | नरेश मेहता वह- जिसकी पीठ हमारी ओर है अपने घर की ओर मुँह किये जा रहा है जाने दो उसे अपने घर। हमारी ओर उसकी पीठ- ठीक ही तो है मुँह यदि होता तो भी, हमारे लिए वह सिवाय एक अनाम व्यक्ति के और हो ही क्या सकता था? पर अपने घर-परिवार के लिए तो वह केवल मुँह नहीं एक सम्भावनाओं वाली ऐसी संज्ञा जिसके साथ सम्बन्धों का इतिहास होगा और होगी प्रतीक्षा करती…
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ग़ज़ा में रमज़ान | शहंशाह आलम ग़ज़ा में रमज़ान का चाँद निकला है यह चाँद कितने चक्कर के बाद बला का ख़ूबसूरत दिखाई देता है किसी खगोल विज्ञानी को मालूम होगा उस लड़की को भी मालूम होगा जिसके जूड़े में पिछली ईद वाली रात टांक दिया था मैंने यही चाँद लेकिन ग़ज़ा में निकला यह चाँद ग़ज़ा की प्रेम करने वाली लड़कियों को उतना ही ख़ूबसूरत दिखाई देता होगा जितना मु…
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बहुत दिनों से | गजानन माधव मुक्तिबोध मैं बहुत दिनों से बहुत दिनों से बहुत-बहुत सी बातें तुमसे चाह रहा था कहना और कि साथ यों साथ-साथ फिर बहना बहना बहना मेघों की आवाज़ों से कुहरे की भाषाओं से रंगों के उद्भासों से ज्यों नभ का कोना-कोना है बोल रहा धरती से जी खोल रहा धरती से त्यों चाह रहा कहना उपमा संकेतों से रूपक से, मौन प्रतीकों से मैं बहुत दिनों से ब…
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Safar Mein Dhoop To Hogi | Nida Fazli
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2:07सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो | निदा फ़ाज़ली सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता मुझे गिरा के अगर तुम सँभल सको तो चलो कहीं नहीं कोई सूरज धुआँ धुआँ है फ़ज़ा ख़ुद अपने आप से बाहर निकल सको तो चलो…
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प्रीति-भेंट | श्रीकांत वर्मा इतने दिनों के बाद अकस्मात मिले तो आँसुओं ने उसके उसे, मेरे मुझे भरमा दिया, आँसू जब थमे तो मैं कुछ और था, वह कुछ और- वह मेरी आँखों में, मैं उसकी आँखों में ढूँढ़ रहा था शंका, अविश्वास और याचना से ठौर!द्वारा Nayi Dhara Radio
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हवन | श्रीकांत वर्मा चाहता तो बच सकता था मगर कैसे बच सकता था जो बचेगा कैसे रचेगा पहले मैं झुलसा फिर धधका चिटखने लगा कराह सकता था मगर कैसे कराह सकता था जो कराहेगा कैसे निबाहेगा न यह शहादत थी न यह उत्सर्ग था न यह आत्मपीड़न था न यह सज़ा थी तब क्या था यह किसी के मत्थे मढ़ सकता था मगर कैसे मढ़ सकता था जो मढ़ेगा कैसे गढ़ेगा।…
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तुमसे मिलने पर | सुनील गंगोपाध्याय अनुवाद : रोहित प्रसाद पथिक तुमसे मिलने पर मैं पूछता हूँ : तुम मनुष्य से प्रेम नहीं करते हो, पर देश से क्यों प्रेम करते हो? देश तुम्हें क्या देगा? देश क्या ईश्वर के जैसा है कुछ? तुमसे मिलने पर मैं पूछता हूँ : बंदूक़ की गोली ख़रीदने के बाद प्राण देने पर देश कहाँ पर होगा? देश क्या जन्म-स्थान की मिट्टी है या कि काँटेदार…
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Amramanjariyon Ki Gandh | Gyanendrapati
1:26
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1:26आम्र-मंजरियों की गंध | ज्ञानेन्द्रपति आम्र-मंजरियों की गंध बसी रही मेरे घर में तुम्हारे जाने के बाद पिछली बार अबके तो तुम्हारे जाने के बाद आम्र-मंजरियों की गंध उठने लगी है मुझ से भीनी-भीनीद्वारा Nayi Dhara Radio
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Nahi Dikhegi Ma | Vishwanath Prasad Tiwari
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3:04नहीं दिखेगी माँ | विश्वनाथ प्रसाद तिवारी नहीं दिखेगी माँ फिर कभी इस रूप में भोर होगा भिनुसार चिरैया एक बोलेगी तिलक चढ़ेगा यज्ञोपवीत होगा कन्यादान बस माँ नहीं होगी पराती गाने के लिए घिरेगी संझा चौखट पर जलेगा दीया आकाश में उगेंगे चंदामामा बस माँ नहीं होगी उन्हें दूध-भात खिलाने के लिए बरसेंगी रातें आँगन में झमाझम धूप में धू- धू जलेगा गाँव चलेंगी पुरवा…
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एक फ़ैंटसी | धर्मवीर भारती साँझ के झुटपुटे में, जब कि दूर आस्माँ पर एक धुआँ-सा छा रहा था, तारे अकुला रहे थे, चाँद थर्रा रहा था चोट इतनी गहरी थी, कि बादलों के सीने से ख़ून उबला आ रहा था, पास की पगडंडी से एक राही कंधों पर अपनी ही लाश लादे धीमे-धीमे जा रहा था गीतों के कंकाल झूठे प्यार के मसान में, धधकती चिताओं के पास बैठे गा रहे थे, अपने सूखे हाथों से…
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भूलना | रचित कितना भयावह है भूलने के बाद सिर्फ़ यह याद रहना कि कुछ भूल गए हैं उससे भी ज़्यादा पीड़ादायक है यह अनुभूति कि वह भूला हुआ जब भी याद आएगा हम जान नहीं पाएँगे कि यही तो भूले थे किसी उदास दिन।द्वारा Nayi Dhara Radio
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